- -ललित गर्ग-
पर्यूषण महापर्व आध्यात्मिक पर्व है, इसका जो केन्द्रीय तत्व है, वह है-आत्मा। आत्मा के निरामय, ज्योतिर्मय स्वरूप को प्रकट करने में पर्युषण महापर्व अहं भूमिका निभाता रहता है। अध्यात्म यानि आत्मा की सन्निकटता। यह पर्व मानव को मानव से जोडने व मानव हृदय को संशोधित करने का पर्व है। यह मन की खिड़कियों, रोशनदानों व दरवाजों को खोलने का पर्व है। पर्यूषण पर्व जैन एकता का प्रतीक पर्व है। जैन लोग इसे सर्वाधिक महत्व देते हैं। संपूर्ण जैन समाज इस पर्व के अवसर पर जागृत एवं साधनारत हो जाता है। दिगंबर परंपरा में इसकी ‘दशलक्षण पर्व’ के रूप में पहचान है। उनमें इसका प्रारंभिक दिन भाद्र व शुक्ला पंचमी और संपन्नता का दिन चतुर्दशी है। दूसरी तरफ श्वेतांबर जैन परंपरा में भाद्र व शुक्ला पंचमी का दिन समाधि का दिन होता है। जिसे संवत्सरी के रूप में पूर्ण त्याग-प्रत्याख्यान, उपवास, पौषध सामायिक, स्वाध्याय और संयम से मनाया जाता है। वर्ष भर में कभी समय नहीं निकाल पाने वाले लोग भी इस दिन जागृत हो जाते हैं। कभी उपवास नहीं करने वाले भी इस दिन धर्मानुष्ठान करते नजर आते हैं। पर्युषण पर्व मनाने के लिए भिन्न-भिन्न मान्यताएं उपलब्ध होती हैं। आगम साहित्य में इसके लिए उल्लेख मिलता है कि संवत्सरी चातुर्मास के 49 या 50 दिन व्यतीत होने पर व 69 या 70 दिन अवशिष्ट रहने पर मनाई जानी चाहिए। दिगम्बर परंपरा में यह पर्व 10 लक्षणों के रूप में मनाया जाता है। यह 10 लक्षण पर्यूषण पर्व के समाप्त होने के साथ ही शुरू होते हैं। पर्यूषण महापर्व-कषाय शमन का पर्व है। यह पर्व 8 दिन तक मनाया जाता है जिसमें किसी के भीतर में ताप, उत्ताप पैदा हो गया हो, किसी के प्रति द्वेष की भावना पैदा हो गई हो तो उसको शांत करने का पर्व है। धर्म के 10 द्वार बताए हैं उसमें पहला द्वार है-क्षमा। क्षमा यानि समता। क्षमा जीवन के लिए बहुत जरूरी है जब तक जीवन में क्षमा नहीं तब तक व्यक्ति अध्यात्म के पथ पर नहीं बढ़ सकता। भगवान महावीर ने क्षमा यानि समता का जीवन जीया। वे चाहे कैसी भी परिस्थिति आई हो, सभी परिस्थितियों में सम रहे। क्षमा वीरो का भूषण है -महान् व्यक्ति ही क्षमा ले व दे सकते हैं। पर्यूषण पर्व आदान-प्रदान का पर्व है। इस दिन सभी अपनी मन की उलझी हुई ग्रंथियों को सुलझाते हैं, अपने भीतर की राग-द्वेष की गांठों को खोलते हैं वह एक दूसरे से गले मिलते हैं। पूर्व में हुई भूलों को क्षमा के द्वारा समाप्त करते हैं व जीवन को पवित्र बनाते हैं। पर्यूषण महापर्व का समापन मैत्री दिवस के रूप में आयोजित होता है, जिसेे क्षमापना दिवस भी कहा जाता है। इस तरह से पर्यूषण महापर्व एवं क्षमापना दिवस-यह एक दूसरे को निकटता में लाने का पर्व है। यह एक दूसरे को अपने ही समान समझने का पर्व है। भगवान महावीर ने कहा-मित्ती में सव्व भूएसु, वेरंमज्झण केणइ सभी प्राणियों के साथ मेरी मैत्री है, किसी के साथ वैर नहीं है। मानवीय एकता, शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व, मैत्री, शोषणविहीन सामाजिकता, अंतर्राष्ट्रीय नैतिक मूल्यों की स्थापना, अहिंसक जीवन आत्मा की उपासना शैली का समर्थन आदि तत्त्व पर्युषण महापर्व के मुख्य आधार हैं। ये तत्त्व जन-जन के जीवन का अंग बन सके, इस दृष्टि से इस महापर्व को जन-जन का पर्व बनाने के प्रयासों की अपेक्षा है। पर्यूषण पर्व प्रतिक्रमण का प्रयोग है। पीछे मुड़कर स्वयं को देखने का ईमानदार प्रयत्न है। वर्तमान की आंख से अतीत और भविष्य को देखते हुए कल क्या थे और कल क्या होना है इसका विवेकी निर्णय लेकर एक नये सफर की शुरुआत की जाती है।
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